hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वो तुम ही थे

लीना मल्होत्रा राव


उस मायावी सड़क पर खड़ी जिसका मै इंतजार करती रही...
मै अपने कई पूर्व जन्मों में भटक गई हूँ
जब क्रीड़ा कर रहे थे हम मृग गज चिड़िया बन कर
तोड़ दिए थे हमने कई सांसारिक बंधन खेल खेल में
जब हमें डराया गया था कई पापों का हवाला देकर
और हम हँसते रहे थे उन क्षुद्र आत्माओं पर जिन्हें मनुष्य की देह मिली थी...
तुम्हीं बने थे मेरे पुत्र
और तुम्हारे ही हाथों से हुआ था मेरा तर्पण
तुम्हीं थे मेरे मित्र और शत्रु भी तुम ही
तुम्हीं को मैंने दंडित किया था और प्रताड़ना दी थी घनघोर
पूर्व जन्म की इन स्वप्न स्मृतियों को मैंने इस जन्म में आयात कर लिया है
और मुझे बहुत से अर्थ समझ में आने लगे है

एक उदासी मेरी आत्मा में घुलती जा रही है
हर जन्म में इकट्ठा हुई उदासी
जो कहीं रीत गई थी
जिसे मैंने नकली हँसी से ढक दिया था
उसी एकत्रित उदासी को मैंने धारण किया है
गुरु की तरह, संकल्प की तरह, धर्म की तरह
गुरु वशिष्ठ मेरे कान में कह रहे है
संसार चक्र को बेध देगा पुन्य चक्र
और मै अपने सब जन्मों का एकत्रित किया हुआ पुन्य मंत्र पढ़ती हूँ
तुम !
तुम !
तुम !
और छोड़ देती हूँ सिद्धि चक्र
उतर जाती हूँ अपनी उदासी की आत्मा की गहराइयों में
जहाँ संसार के भंग हुए भग्नावेशों पर
तुम एक स्मृति बने मेरी प्रतीक्षा कर रहे हो
यही है वह संधि स्थल जहाँ से मैं अज्ञात में छलाँग लगा सकती हूँ
और अज्ञात के उस पार परमात्मा मेरी राह देख रहे हैं
लेकिन मै नहीं जाती
और अस्वीकार कर देती हूँ उस आत्मा को
जिसे संवेदनाएँ भिगो नहीं सकती
अश्रु गीला नहीं कर सकते
विरह की अग्नि जला नहीं सकती
तिरस्कार काट नहीं सकता
और बनी रहती हूँ एक हठी देह

अभी अभी मुझे आइन्स्टाइन का सापेक्षता सिद्धांत समझ आया है


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में लीना मल्होत्रा राव की रचनाएँ